बांग्लादेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति बद से बदतर होती जा रही, मोहम्मद यूनुस से नहीं संभल रहा, ढाका में 35 मर्डर

ढाका
पड़ोसी देश बांग्लादेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। हत्या, लूट, रंगदारी और अपहरण के मामलों में बेतहाशा बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है। आलम यह है कि मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार अपराधियों पर नकेल कसने में लाचार दिख रही है। यही वजह है कि पिछले डेढ़ महीने में 35 लोगों की हत्या हो चुकी है। आधिकारिक आंकड़े इस बात की तस्दीक करते हैं और अपराधिक गतिविधियों की चिंताजनक प्रवृत्ति दिखा रहे हैं। हाल की आपराधिक घटनाओं से लोगों में भारी गुस्सा और रोष है।

मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि 1 जनवरी से 19 फरवरी, 2025 के बीच सिर्फ राजधानी ढाका में 35 हत्याएं हुईं हैं। इसके अलावा लूटपाट, डकैती और अपहरण के भी कई मामले सामने आए हैं। ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, बीती रात यानी मंगलवार की रात भी जतराबाड़ी के सुती खालपार इलाके में हथियारबंद लुटेरों ने एक युवक को गोली मार दी और उसके सामान लूट लिए। अपराध में इस वृद्धि ने पुलिस को सुरक्षा बढ़ाने और अधिक सतर्क रहने के लिए मजबूर किया है। दूसरी तरफ आम आदमी दहशत में है। देश भर में बढ़ते अपराध पर यूनुस सरकार बेपरवाह नजर आ रही है। सरकार की तरफ से विरोधाभासी बयान दिए जा रहे हैं। अंतरिम सरकार में गृह मामलों के सलाहकार मोइनुद्दीन अब्दुल्ला ने इस संकट को कमतर आंकते हुए कहा कि कानून व्यवस्था की स्थिति संतोषजनक है। उनके बयान ने लोगों के मन में संदेह और बढ़ा दिया है क्योंकि लोग बढ़ती असुरक्षा से जूझ रहे हैं।

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दूसरी तरफ कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालने वाली बांग्लादेश पुलिस ने स्वीकार किया है कि राजधानी ढाका समेत देशभर में आपराधिक गतिविधियों में तेजी से इजाफा हुआ है और लोग इस वजह से भयभीत हैं। अधिकारी ने कई रिपोर्ट में दिनदहाड़े क्रूर हत्याओं, अपहरण और डकैती के चौंकाने वाले मामलों को उजागर किया है। हालांकि, इन अपराधों की गंभीरता के बावजूद, यूनुस सरकार दावा करती रहती है कि स्थिति नियंत्रण में है।

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यही वजह है कि गृह मामलों के सलाहकार के इस्तीफे की मांग अब जोर पकड़ रही है। ढाका में हाल ही में छात्रों के नेतृत्व में हुए विरोध प्रदर्शनों में नागरिकों ने भी बड़े पैमाने पर शिरकत की थी और गृह मामलों के सलाहकार मोइनुद्दीन अब्दुल्ला का इस्तीफा मांगा था। आधिकारिक बयानों और जमीनी हकीकतों के बीच बढ़ते अंतर ने बांग्लादेश के संस्थाओं में विश्वास को कमजोर कर दिया है। इससे खफा बड़े पैमाने पर लोग विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। लिहाजा, न्यायपालिका, कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ और राजनीतिक वर्ग सभी को कठिन चुनौतियो का सामना करना पड़ रहा है।

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